भवान् कलत्रमस्माकं स्वामिभावे व्यवस्थित:।
स्वामी कलत्रं सैन्यस्य गतिरेषा परंतप॥ २३॥
अनुवाद
स्वामी और सेना का रिश्ता एक पति-पत्नी के रिश्ते जैसा होता है। जैसे पति अपनी पत्नी की रक्षा और सम्मान करता है, वैसे ही स्वामी को भी अपनी सेना की रक्षा और सम्मान करना चाहिए। सेना ही स्वामी की शक्ति और गौरव होती है। स्वामी को चाहिए कि वह सेना को हमेशा सशक्त और सुसज्जित रखे।