श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.65.22 
 
 
नहि प्रेषयिता तात स्वामी प्रेष्य: कथंचन।
भवतायं जन: सर्व: प्रेष्य: प्लवगसत्तम॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  किन्तु हे तात! वानरों में श्रेष्ठ हनुमान! जो सबको भेजने वाला स्वामी है, वह किसी भी तरह से प्रेष्य (आज्ञापालक) नहीं हो सकता। ये सभी लोग आपके सेवक हैं, आप इन्हीं में से किसी को भेजें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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