श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.65.21 
 
 
कामं शतसहस्रं वा नह्येष विधिरुच्यते।
योजनानां भवान् शक्तो गन्तुं प्रतिनिवर्तितुम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  भले ही तुम्हें लाखों योजन की दूरी तय करनी पड़े, फिर भी तुम हमारे स्वामी हो। अतः तुम्हें भेजना हमारे लिए उचित नहीं है। तुम लाखों योजन जाकर वहाँ से लौटने में भी समर्थ हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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