श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 65: जाम्बवान् और अङ्गद की बातचीत तथा जाम्बवान् का हनुमान्जी को प्रेरित करने के लिये उनके पास जाना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.65.1 
 
 
अथाङ्गदवच: श्रुत्वा ते सर्वे वानरर्षभा:।
स्वं स्वं गतौ समुत्साहमूचुस्तत्र यथाक्रमम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  अंगद की ये बातें सुनकर वे सभी श्रेष्ठ वानर अपनी लंबी छलांग मारने की क्षमता का क्रमशः परिचय देने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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