श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  4.64.9 
 
 
न विषादे मन: कार्यं विषादो दोषवत्तर:।
विषादो हन्ति पुरुषं बालं क्रुद्ध इवोरग:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  वीर पुरुषो! तुम अपने मन को विषाद से भरके नहीं रखना चाहिए, क्योंकि विषाद बहुत बड़ा दोष है। जैसे क्रोध में भरा हुआ साँप पास आये हुए बालक को काट खा जाता है, उसी तरह विषाद पुरुष का नाश कर देता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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