श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.64.6 
 
 
संकुलं दानवेन्द्रैश्च पातालतलवासिभि:।
रोमहर्षकरं दृष्ट्वा विषेदु: कपिकुञ्जरा:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  उस सम्पूर्ण समुद्र में दानवेन्द्रों के साथ-साथ पाताल लोक के निवासी भी व्याप्त थे। उस रोमांच से भरे हुए महासागर को देखकर सभी श्रेष्ठ वानर बहुत अधिक विषाद में पड़ गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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