वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना
»
श्लोक 21
श्लोक
4.64.21
पुनरेवाङ्गद: प्राह तान् हरीन् हरिसत्तम:।
सर्वे बलवतां श्रेष्ठा भवन्तो दृढविक्रमा:।
व्यपदेशकुले जाता: पूजिताश्चाप्यभीक्ष्णश:॥ २१॥
अनुवाद
play_arrowpause
फिर वानरश्रेष्ठ अंगद ने उन सभी से कहा, "हे बलशालियों में श्रेष्ठ वानरों! आप सभी दृढ़तापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले हैं। आपका जन्म कलंकित रहित उत्तम कुल में हुआ है। इसके लिए आपकी बार-बार प्रशंसा हो चुकी है।"
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.