श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  4.64.21 
 
 
पुनरेवाङ्गद: प्राह तान् हरीन् हरिसत्तम:।
सर्वे बलवतां श्रेष्ठा भवन्तो दृढविक्रमा:।
व्यपदेशकुले जाता: पूजिताश्चाप्यभीक्ष्णश:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  फिर वानरश्रेष्ठ अंगद ने उन सभी से कहा, "हे बलशालियों में श्रेष्ठ वानरों! आप सभी दृढ़तापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले हैं। आपका जन्म कलंकित रहित उत्तम कुल में हुआ है। इसके लिए आपकी बार-बार प्रशंसा हो चुकी है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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