श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  4.64.18 
 
 
कस्य प्रसादाद् रामं च लक्ष्मणं च महाबलम्।
अभिगच्छेम संहृष्टा: सुग्रीवं च वनौकसम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  हमलोग किसके अनुग्रह से रामजी, महाबली लक्ष्मण और वन में रहने वाले वीर सुग्रीव के पास हर्ष से भरकर जा सकेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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