श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.64.11 
 
 
तस्यां रात्र्यां व्यतीतायामङ्गदो वानरै: सह।
हरिवृद्धै: समागम्य पुनर्मन्त्रममन्त्रयत्॥ ११॥
 
 
अनुवाद
 
  उस रात्रि के बीत जाने के पश्चात, अंगद बड़े-बड़े वानरों के साथ पुनः एकत्रित हुए और अपनी योजना पर विचार-विमर्श करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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