श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.64.10 
 
 
यो विषादं प्रसहते विक्रमे समुपस्थिते।
तेजसा तस्य हीनस्य पुरुषार्थो न सिद्धॺति॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति पराक्रम करने के अवसर पर विषादग्रस्त हो जाता है, उसके तेज का नाश होता है। ऐसे तेजहीन व्यक्ति का पुरुषार्थ सफल नहीं होता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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