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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 64: समुद्र की विशालता देखकर विषाद में पड़े हुए वानरों को आश्वासन दे अङ्गद का उनसे पृथक्-पृथक् समुद्र-लङ्घन के लिये उनकी शक्ति पूछना
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श्लोक 1
श्लोक
4.64.1
आख्याता गृध्रराजेन समुत्प्लुत्य प्लवङ्गमा:।
संगता: प्रीतिसंयुक्ता विनेदु: सिंहविक्रमा:॥ १॥
अनुवाद
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गृध्रराज सम्पाति के ऐसा कहने पर वानर हर्षित हो उठे और एक-दूसरे से लिपटकर गर्व से गर्जना करने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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