तदनन्तर हनुमान जी के समान पराक्रमी वे श्रेष्ठ वानर अपना भूला हुआ पुरुषार्थ फिर से प्राप्त करके माता सीता की खोज के लिए उत्सुक होकर अभिजित् नक्षत्र से युक्त दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे त्रिषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ ३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें तिरसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ ३॥