श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 62: निशाकर मुनि का सम्पाति को सान्त्वना देते हुए उन्हें भावी श्रीरामचन्द्रजी के कार्य में सहायता देने के लिये जीवित रहने का आदेश देना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.62.13 
 
 
उत्सहेयमहं कर्तुमद्यैव त्वां सपक्षकम्।
इहस्थस्त्वं हि लोकानां हितं कार्यं करिष्यसि॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  यद्यपि मैं तुम्हें आज ही पंख दे सकता हूँ, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर रहा हूँ क्योंकि यहाँ रहकर तुम दुनिया के लिए कई अच्छे काम कर सकते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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