श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 61: सम्पाति का निशाकर मुनि को अपने पंख के जलने का कारण बताना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  4.61.17 
 
 
राज्याच्च हीनो भ्रात्रा च पक्षाभ्यां विक्रमेण च।
सर्वथा मर्तुमेवेच्छन् पतिष्ये शिखराद् गिरे:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  राज्य से हट गया, भाई से बिछुड़ गया, साथ ही पंख और साहस भी खो बैठा। इसलिए मैं इस पर्वत की ऊँची चोटी से गिर कर सर्वथा मर जाने की इच्छा करता हूँ।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे एकषष्टितम: सर्ग: ॥ ६ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें इकसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ १॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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