श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 60: सम्पाति की आत्मकथा  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.60.8 
 
 
आसीच्चात्राश्रमं पुण्यं सुरैरपि सुपूजितम्।
ऋषिर्निशाकरो नाम यस्मिन्नुग्रतपाऽभवत्॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  हाँ, यहाँ पहले काल में एक पुण्य आश्रम हुआ करता था जिसका सुर अर्थात देवता भी पूजन करते थे। उस आश्रम में एक निशाकर नाम के ऋषि रहा करते थे जो बहुत बड़े तपस्वी और उग्र तपस्या वाले थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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