श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 60: सम्पाति की आत्मकथा  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  4.60.7 
 
 
हृष्टपक्षिगणाकीर्ण: कन्दरोदरकूटवान्।
दक्षिणस्योदधेस्तीरे विन्ध्योऽयमिति निश्चित:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  तब मैंने निश्चय किया कि यह विन्ध्य पर्वत है, जो दक्षिण समुद्र के तट पर स्थित है। यह पर्वत हर्षित पक्षियों के समूह से भरा हुआ है। यहाँ बहुत-सी कंदराएँ, गुफाएँ और शिखर हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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