श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 60: सम्पाति की आत्मकथा  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.60.13 
 
 
उपेत्य चाश्रमं पुण्यं वृक्षमूलमुपाश्रित:।
द्रष्टुकाम: प्रतीक्षे च भगवन्तं निशाकरम्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं उस पवित्र आश्रम में पहुँचा और एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। मैं भगवान् चंद्रमा के दर्शन करना चाहता था, इसलिए मैं उनके आने का इंतजार करने लगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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