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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 11
श्लोक
4.60.11
तमृषिं द्रष्टुकामोऽस्मि दु:खेनाभ्यागतो भृशम्।
जटायुषा मया चैव बहुशोऽधिगतो हि स:॥ ११॥
अनुवाद
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महर्षि अत्रि से मिलने की इच्छा से मैंने कठिनाइयों को झेलते हुए वहाँ तक की यात्रा की। इससे पहले भी जटायु और मैं दोनों उनसे कई बार मिल चुके थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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