अवतीर्य च विन्ध्याग्रात् कृच्छ्रेण विषमाच्छनै:।
तीक्ष्णदर्भां वसुमतीं दु:खेन पुनरागत:॥ १०॥
अनुवाद
विंध्याचल के उस ऊँचे-नीचे शिखर से धीरे-धीरे बड़ी मुश्किल से उतरकर मैं अंततः ज़मीन पर पहुँचा। उस समय मैं ऐसी जगह पर आ पहुँचा, जहाँ तीखे कुश उगे हुए थे। फिर वहाँ से भी दुख सहते हुए आगे बढ़ा।