वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 60: सम्पाति की आत्मकथा
»
श्लोक 1
श्लोक
4.60.1
तत: कृतोदकं स्नातं तं गृध्रं हरियूथपा:।
उपविष्टा गिरौ रम्ये परिवार्य समन्तत:॥ १॥
अनुवाद
play_arrowpause
तब जलतर्पण करके स्नान से निवृत्त हुए गृधराज सम्पाति के चारों ओर समस्त वानरयूथपति रमणीय पर्वत पर बैठ गये।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.