श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 60: सम्पाति की आत्मकथा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.60.1 
 
 
तत: कृतोदकं स्नातं तं गृध्रं हरियूथपा:।
उपविष्टा गिरौ रम्ये परिवार्य समन्तत:॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  तब जलतर्पण करके स्नान से निवृत्त हुए गृधराज सम्पाति के चारों ओर समस्त वानरयूथपति रमणीय पर्वत पर बैठ गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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