श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 59: सम्पाति का अपने पुत्र सुपार्श्व के मुख से सुनी हुई सीता और रावण को देखने की घटना का वृत्तान्त बताना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.59.5 
 
 
स हरीन् प्रतिसम्मुक्तान् सीताश्रुतिसमाहितान्।
पुनराश्वासयन् प्रीत इदं वचनमब्रवीत्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय भूख-प्यास को त्यागकर बैठे और सीताजी के वृत्तांत को सुनने के लिए एकाग्र हुए वानरों को प्रसन्नतापूर्वक फिर से आश्वस्त करते हुए सम्पाति ने उनसे यह बात कही-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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