स हरीन् प्रतिसम्मुक्तान् सीताश्रुतिसमाहितान्।
पुनराश्वासयन् प्रीत इदं वचनमब्रवीत्॥ ५॥
अनुवाद
उस समय भूख-प्यास को त्यागकर बैठे और सीताजी के वृत्तांत को सुनने के लिए एकाग्र हुए वानरों को प्रसन्नतापूर्वक फिर से आश्वस्त करते हुए सम्पाति ने उनसे यह बात कही-।