श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 59: सम्पाति का अपने पुत्र सुपार्श्व के मुख से सुनी हुई सीता और रावण को देखने की घटना का वृत्तान्त बताना  »  श्लोक 20-22
 
 
श्लोक  4.59.20-22 
 
 
पश्यन् दाशरथेर्भार्यां रामस्य जनकात्मजाम्।
भ्रष्टाभरणकौशेयां शोकवेगपराजिताम्॥ २०॥
रामलक्ष्मणयोर्नाम क्रोशन्तीं मुक्तमूर्धजाम्।
एष कालात्ययस्तात इति वाक्यविदां वर:॥ २१॥
एतदर्थं समग्रं मे सुपार्श्व: प्रत्यवेदयत् ।
तच्छ्रुत्वापि हि मे बुद्धिर्नासीत् काचित् पराक्रमे॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘तात! दशरथ नन्दन श्रीराम की पत्नी जनककिशोरी सीता शोक के वेग से हार गई थीं। उनके आभूषण वस्त्र गिर रहे थे और उनके बाल खुले हुए थे। वे श्रीराम और लक्ष्मण का नाम लेकर उन्हें पुकार रही थीं। सुपार्श्व ने मुझे बताया कि यही मेरे विलम्ब से आने का कारण है। यह सब सुनकर भी मेरे मन में पराक्रम करने का कोई विचार नहीं आया।’ इस प्रकार सुपार्श्व ने बातचीत की कला का परिचय दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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