श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 57: अङ्गद का सम्पाति को जटायु के मारे जाने का वृत्तान्त बताना तथा राम-सुग्रीव की मित्रता एवं वालिवध का प्रसंग सुनाकर अपने आमरण उपवास का कारण निवेदन करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  4.57.19 
 
 
क्रुद्धे तस्मिंस्तु काकुत्स्थे सुग्रीवे च सलक्ष्मणे।
गतानामपि सर्वेषां तत्र नो नास्ति जीवितम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  क्रुद्ध ककुत्स्थ वंश के भूषण श्रीराम, लक्ष्मण और सुग्रीव तीनों हम पर क्रोधित होंगे। उस अवस्था में वहाँ लौट जाने के बाद भी हम सबके प्राण नहीं बच सकते हैं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे सप्तपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें सत्तावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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