श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 57: अङ्गद का सम्पाति को जटायु के मारे जाने का वृत्तान्त बताना तथा राम-सुग्रीव की मित्रता एवं वालिवध का प्रसंग सुनाकर अपने आमरण उपवास का कारण निवेदन करना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  4.57.17 
 
 
मयस्य मायाविहितं तद् बिलं च विचिन्वताम्।
व्यतीतस्तत्र नो मासो यो राज्ञा समय: कृत:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  वह विमान मयासुर की माया से निर्मित हुआ था। उसे ढूँढते-ढूँढते हमारा एक महीना निकल गया, जिसे राजा सुग्रीव ने हमारे लौटने की अवधि के रूप में तय किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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