श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 57: अङ्गद का सम्पाति को जटायु के मारे जाने का वृत्तान्त बताना तथा राम-सुग्रीव की मित्रता एवं वालिवध का प्रसंग सुनाकर अपने आमरण उपवास का कारण निवेदन करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.57.13 
 
 
मम पित्रा निरुद्धो हि सुग्रीव: सचिवै: सह।
निहत्य वालिनं रामस्ततस्तमभिषेचयत्॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरे पिता वनरराज वाली ने सुग्रीव और उनके मंत्रियों को राज्य से वंचित कर दिया था। इसलिए, श्री रामचंद्र जी ने मेरे पिता वाली को मार डाला और सुग्रीव का राज्याभिषेक कराया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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