श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  4.56.8 
 
 
रामस्य न कृतं कार्यं न कृतं राजशासनम्।
हरीणामियमज्ञाता विपत्ति: सहसाऽऽगता॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  हम लोग श्रीराम जी के कार्यों में सहायता नहीं की और न ही राजा सुग्रीव की आज्ञा का पालन किया। इसी दौरान हनुमान जी और हमारे ऊपर अचानक से ये अनजानी आपत्ति आन पड़ी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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