श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.56.6 
 
 
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा भक्ष्यलुब्धस्य पक्षिण:।
अङ्गद: परमायस्तो हनूमन्तमथाब्रवीत्॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  अंगद ने भोजन की लालच में फंसे उस पक्षी की बात सुनकर बहुत दुःखी हुआ और हनुमान जी से कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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