‘जैसे लोकमें पूर्वजन्मके कर्मानुसार मनुष्यको उसके कियेका फल स्वत: प्राप्त होता है, उसी प्रकार आज दीर्घकालके पश्चात् यह भोजन स्वत: मेरे लिये प्राप्त हो गया। अवश्य ही यह मेरे किसी कर्मका फल है। इन वानरोंमेंसे जो-जो मरता जायगा, उसको मैं क्रमश: भक्षण करता जाऊँगा’ यह बात उस पक्षीने उन सब वानरोंको देखकर कहा॥ ४-५॥