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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना
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श्लोक 19
श्लोक
4.56.19
कोऽयं गिरा घोषयति प्राणै: प्रियतरस्य मे।
जटायुषो वधं भ्रातु: कम्पयन्निव मे मन:॥ १९॥
अनुवाद
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कौन है, जो मेरे प्राणों से भी बढ़कर प्रिय भाई जटायु के वध की बात कह रहा है। इसे सुनकर मेरा हृदय कम्पित-सा होने लगा है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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