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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना
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श्लोक 18
श्लोक
4.56.18
तत् तु श्रुत्वा तथा वाक्यमङ्गदस्य मुखोद्गतम्।
अब्रवीद् वचनं गृध्रस्तीक्ष्णतुण्डो महास्वन:॥ १८॥
अनुवाद
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अंगद के मुँह से निकले उस कथन को सुनकर तीखी चोंच वाले उस गिद्ध ने ऊँची आवाज़ में यह पूछा—।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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