श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  4.56.17 
 
 
तदसुखमनुकीर्तितं वचो
भुवि पतितांश्च निरीक्ष्य वानरान्।
भृशचकितमतिर्महामति:
कृपणमुदाहृतवान् स गृध्रराज:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  वानरों के दुःखी वचन सुनकर और उन्हें पृथ्वी पर गिरा हुआ देखकर महामना सम्पाति का हृदय बहुत ही व्याकुल हो गया और वे दयनीय स्वर में बोलने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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