श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 56: सम्पाति से वानरों को भय, उनके मुख से जटायु के वध की बात सुनकर सम्पाति का दुःखी होना और अपने को नीचे उतारने के लिये वानरों से अनुरोध करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  4.56.14 
 
 
जटायुषो विनाशेन राज्ञो दशरथस्य च।
हरणेन च वैदेह्या: संशयं हरयो गता:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  राजा दशरथ की मृत्यु, जटायु पक्षी का विनाश और विदेह की राजकुमारी सीता का अपहरण- इन घटनाओं ने वानरों के जीवन को संशय में डाल दिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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