वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
»
सर्ग 55: अङ्गद सहित वानरों का प्रायोपवेशन
»
श्लोक 16-17h
श्लोक
4.55.16-17h
विनष्टमिह मां श्रुत्वा व्यक्तं हास्यति जीवितम्।
एतावदुक्त्वा वचनं वृद्धांस्तानभिवाद्य च॥ १६॥
विवेश चाङ्गदो भूमौ रुदन् दर्भेषु दुर्मना:।
अनुवाद
play_arrowpause
अपनी विनाश की खबर सुनकर निश्चित ही वह अपना जीवन त्याग देगी। इतना कहकर अंगद ने उन सभी बड़े-बूढ़े वानरों को प्रणाम किया और धरती पर कुश बिछाकर उदास मुंह से रोते-रोते वे प्राणत्याग के लिए बैठ गए।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.