श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 55: अङ्गद सहित वानरों का प्रायोपवेशन  »  श्लोक 16-17h
 
 
श्लोक  4.55.16-17h 
 
 
विनष्टमिह मां श्रुत्वा व्यक्तं हास्यति जीवितम्।
एतावदुक्त्वा वचनं वृद्धांस्तानभिवाद्य च॥ १६॥
विवेश चाङ्गदो भूमौ रुदन् दर्भेषु दुर्मना:।
 
 
अनुवाद
 
  अपनी विनाश की खबर सुनकर निश्चित ही वह अपना जीवन त्याग देगी। इतना कहकर अंगद ने उन सभी बड़े-बूढ़े वानरों को प्रणाम किया और धरती पर कुश बिछाकर उदास मुंह से रोते-रोते वे प्राणत्याग के लिए बैठ गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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