श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 54: हनुमान जी का भेदनीति के द्वारा वानरों को अपने पक्ष में करके अङ्गद को अपने साथ चलने के लिये समझाना  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  4.54.9 
 
 
नित्यमस्थिरचित्ता हि कपयो हरिपुंगव।
नाज्ञाप्यं विषहिष्यन्ति पुत्रदारं विना त्वया॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  कपि श्रेष्ठ! ये कपि हमेशा चंचलचित्तता वाले होते हैं। अपने पत्नी-बच्चों से अलग होकर आपकी आज्ञा का पालन करना इनके लिए सहनीय नहीं होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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