श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 52: तापसी स्वयंप्रभा के पूछने पर वानरों का उसे अपना वृत्तान्त बताना और उसके प्रभाव से गुफा के बाहर निकलकर समुद्रतट पर पहुँचना  »  श्लोक 28-29h
 
 
श्लोक  4.52.28-29h 
 
 
ततो निमीलिता: सर्वे सुकुमाराङ्गुलै: करै:॥ २८॥
सहसा पिदधुर्दृष्टिं हृष्टा गमनकांक्षया।
 
 
अनुवाद
 
  सुनकर सभी ने सुकुमार अंगुलियों वाले हाथों से आँखें बंद कर लीं। गुफा से बाहर निकलने की इच्छा से खुश होकर, उन सभी ने एक साथ अपनी आँखें बंद कर लीं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.