श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 50: भूखे-प्यासे वानरों का एक गुफा में घुसकर वहाँ दिव्य वृक्ष, दिव्य सरोवर, दिव्य भवन तथा एक वृद्धा तपस्विनी को देखना और हनुमान जी का उसका परिचय पूछना  »  श्लोक 38-40
 
 
श्लोक  4.50.38-40 
 
 
तत्र तत्र विचिन्वन्तो बिले तत्र महाप्रभा:॥ ३८॥
ददृशुर्वानरा: शूरा: स्त्रियं कांचिददूरत:।
तां च ते ददृशुस्तत्र चीरकृष्णाजिनाम्बराम्॥ ३९॥
तापसीं नियताहारां ज्वलन्तीमिव तेजसा।
विस्मिता हरयस्तत्र व्यवतिष्ठन्त सर्वश:।
पप्रच्छ हनुमांस्तत्र कासि त्वं कस्य वा बिलम्॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  उस गुफा में चारों ओर खोज करते हुए उन महातेजस्वी शूरवीर वानरों ने कुछ ही दूरी पर एक स्त्री को देखा, जो वल्कल और काले मृगचर्म के वस्त्र पहने हुए थी। वह नियमित आहार ले रही थी और तपस्या में लीन थी। उसके तेज से पूरा वातावरण प्रकाशमान हो रहा था। वानरों ने वहाँ उसे ध्यान से देखा और आश्चर्यचकित होकर सब ओर खड़े रहे। उस समय हनुमान जी ने उससे पूछा - "हे देवि! आप कौन हैं और यह किसकी गुफा है?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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