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श्लोक 4.48.24  |
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ते विचित्य पुन: खिन्ना विनिष्पत्य समागता:।
एकान्ते वृक्षमूले तु निषेदुर्दीनमानसा:॥ २४॥ |
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अनुवाद |
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उन्होंने खोजते-खोजते थक हार कर निराश होकर वहाँ से चले आए। फिर सब एकांत स्थान में एक पेड़ के नीचे उदासी से बैठ गए। |
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इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डेऽष्टचत्वारिंश: सर्ग:॥ ४८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें अड़तालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४८॥ |
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