श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 47: पूर्व आदि तीन दिशाओं में गये हुए वानरों का निराश होकर लौट आना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  4.47.14 
 
 
उदारसत्त्वाभिजनो हनूमान्
स मैथिलीं ज्ञास्यति वानरेन्द्र।
दिशं तु यामेव गता तु सीता
तामास्थितो वायुसुतो हनूमान्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  वायु पुत्र हनुमान अति शक्तिशाली और कुलीन हैं। वे ही मिथिलेश कुमारी का पता लगा सकेंगे। क्योंकि वे उसी दिशा में गए हैं, जिसके वे सीता की निशानियाँ पा सके हैं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे सप्तचत्वारिंश: सर्ग: ॥ ४ ७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें सैंतालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ४ ७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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