श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 47: पूर्व आदि तीन दिशाओं में गये हुए वानरों का निराश होकर लौट आना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  4.47.13 
 
 
गहनेषु च देशेषु दुर्गेषु विषमेषु च।
सत्त्वान्यतिप्रमाणानि विचितानि हतानि च।
ये चैव गहना देशा विचितास्ते पुन: पुन:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  गहनों से भरे जंगलों में, अलग-अलग देशों में, दुर्गम और ऊंचे स्थानों पर भी खोज की है। बड़े-बड़े प्राणियों का भी पता लगाया और उनका शिकार किया। जिन-जिन प्रदेशों को घना और दुर्गम जाना जाता था, वहां बार-बार खोज की (लेकिन कहीं भी सीताजी का पता नहीं चला)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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