श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 47: पूर्व आदि तीन दिशाओं में गये हुए वानरों का निराश होकर लौट आना  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  4.47.11-12 
 
 
विचिता: पर्वता: सर्वे वनानि गहनानि च।
निम्नगा: सागरान्ताश्च सर्वे जनपदाश्च ये॥ ११॥
गुहाश्च विचिता: सर्वा याश्च ते परिकीर्तिता:।
विचिताश्च महागुल्मा लताविततसंतता:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन! हमने सम्पूर्ण पर्वत शृंखलाओं, घने जंगलों, समुद्र तक बहने वाली नदियों, समस्त राष्ट्रों और आपने जिन गुफाओं का उल्लेख किया था, उन्हें भी ढूंढ लिया है। साथ ही, हमने लताओं से घिरी झाड़ियों को भी खोजा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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