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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 46: सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी को अपने भूमण्डल-भ्रमण का वृत्तान्त बताना
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श्लोक 21-22
श्लोक
4.46.21-22
इदानीं मे स्मृतं राजन् यथा वाली हरीश्वर:॥ २१॥
मतङ्गेन तदा शप्तो ह्यस्मिन्नाश्रममण्डले।
प्रविशेद् यदि वै वाली मूर्धास्य शतधा भवेत्॥ २२॥
अनुवाद
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वाली, वानरों के राजा को मतंग ऋषि ने शाप दिया था कि यदि वह उनके आश्रम में प्रवेश करेगा, तो उसके सिर के सैकड़ों टुकड़े हो जाएँगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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