श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 46: सुग्रीव का श्रीरामचन्द्रजी को अपने भूमण्डल-भ्रमण का वृत्तान्त बताना  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  4.46.12-13 
 
 
ततोऽहं वालिना तेन सोऽनुबद्ध: प्रधावित:।
नदीश्च विविधा: पश्यन् वनानि नगराणि च॥ १२॥
आदर्शतलसंकाशा ततो वै पृथिवी मया।
अलातचक्रप्रतिमा दृष्टा गोष्पदवत् कृता॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं वालि से दूर भाग रहा था और उसने मेरा पीछा किया। भागते समय मैंने विभिन्न नदियों, वनों और नगरों को देखा और उन्हें गाय के खुर की तरह मानकर अपनी परिक्रमा की। भागते समय मुझे पृथ्वी दर्पण और अलातचक्र की तरह दिखाई दे रही थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.