श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 44: श्रीराम का हनुमान जी को अँगूठी देकर भेजना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  4.44.17 
 
 
अतिबल बलमाश्रितस्तवाहं
हरिवर विक्रम विक्रमैरनल्पै:।
पवनसुत यथाधिगम्यते सा
जनकसुता हनुमंस्तथा कुरुष्व॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्री रामचन्द्र जी ने हनुमान जी को जाते हुए फिर से सम्बोधित करते हुए कहा - "हे अति बलशाली वानरों में श्रेष्ठ! मैंने तुम्हारे बल का आश्रय लिया है। हे पवन कुमार हनुमान! जैसे भी हो, लेकिन जनक नन्दिनी सीता को प्राप्त करने के लिए तुम अपने महान बल और पराक्रम से वैसा ही प्रयत्न करो। अच्छा, अब जाओ।"
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे चतुश्चत्वारिंश: सर्ग:॥ ४४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें चौवालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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