श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 43: सुग्रीव का उत्तर दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए शतबलि आदि वानरों को वहाँ भेजना  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  4.43.55 
 
 
स तु देशो विसूर्योऽपि तस्य भासा प्रकाशते।
सूर्यलक्ष्म्याभिविज्ञेयस्तपतेव विवस्वता॥ ५५॥
 
 
अनुवाद
 
  वह देश सूर्य से रहित है, फिर भी भगवान शिव के निवास, कैलाश पर्वत की चमक से हमेशा प्रकाशित रहता है। सूर्य के तेज से प्रकाशित होने वाले देशों की तरह ही उसे सूर्यदेव के प्रकाश से युक्त समझना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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