गभस्तिभिरिवार्कस्य स तु देश: प्रकाश्यते।
विश्राम्यद्भिस्तप:सिद्धैर्देवकल्पै: स्वयंप्रभै:॥ ३६॥
अनुवाद
तब भी उस देश में ऐसा प्रकाश छाया रहेगा, मानो सूर्य की किरणें उस प्रकाश को जला रहीं हैं। वहाँ अपने तेज से प्रकाशित तपस्वी साधु विश्राम ले रहे हैं। उनकी ही देह से निकलने वाली कांति से उस देश में प्रकाश फैला हुआ है।