श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 43: सुग्रीव का उत्तर दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए शतबलि आदि वानरों को वहाँ भेजना  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  4.43.36 
 
 
गभस्तिभिरिवार्कस्य स तु देश: प्रकाश्यते।
विश्राम्यद्भिस्तप:सिद्धैर्देवकल्पै: स्वयंप्रभै:॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  तब भी उस देश में ऐसा प्रकाश छाया रहेगा, मानो सूर्य की किरणें उस प्रकाश को जला रहीं हैं। वहाँ अपने तेज से प्रकाशित तपस्वी साधु विश्राम ले रहे हैं। उनकी ही देह से निकलने वाली कांति से उस देश में प्रकाश फैला हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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