श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 42: सुग्रीव का पश्चिम दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए सुषेण आदि वानरों को वहाँ भेजना  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  4.42.58 
 
 
तत: सुषेणप्रमुखा: प्लवङ्गा:
सुग्रीववाक्यं निपुणं निशम्य।
आमन्त्र्य सर्वे प्लवगाधिपं ते
जग्मुर्दिशं तां वरुणाभिगुप्ताम्॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
 
  सुषेण आदि सभी बंदरों ने सुग्रीव की बातें ध्यानपूर्वक सुनीं और फिर बंदरों के राजा की आज्ञा लेकर पश्चिम दिशा की ओर चल पड़े, जो वरुण देवता के संरक्षण में थी।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये किष्किन्धाकाण्डे द्विचत्वारिंश: सर्ग:॥ ४२॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके किष्किन्धाकाण्डमें बयालीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ४२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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