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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड
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सर्ग 42: सुग्रीव का पश्चिम दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए सुषेण आदि वानरों को वहाँ भेजना
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श्लोक 57
श्लोक
4.42.57
अतोऽन्यदपि यत्कार्यं कार्यस्यास्य प्रियं भवेत्।
सम्प्रधार्य भवद्भिश्च देशकालार्थसंहितम्॥ ५७॥
अनुवाद
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अतः इस कार्य के अतिरिक्त और भी जो कर्तव्य देश, काल और प्रयोजन से सम्बन्ध रखता हो, उस पर भी विचार करके तुम उसे भी करो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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