श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 42: सुग्रीव का पश्चिम दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए सुषेण आदि वानरों को वहाँ भेजना  »  श्लोक 41-42
 
 
श्लोक  4.42.41-42 
 
 
विश्वेदेवाश्च वसवो मरुतश्च दिवौकस:।
आगत्य पश्चिमां संध्यां मेरुमुत्तमपर्वतम्॥ ४१॥
आदित्यमुपतिष्ठन्ति तैश्च सूर्योऽभिपूजित:।
अदृश्य: सर्वभूतानामस्तं गच्छति पर्वतम्॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
 
  विश्वेदेव, वसु और मरुद्गण जैसे देवता सायंकाल में उत्तम पर्वत मेरु पर आते हैं और सूर्य देव की पूजा करते हैं। सूर्य देव उनकी पूजा से प्रसन्न होकर अस्ताचल पर्वत की ओर चले जाते हैं और सभी प्राणियों की आँखों से ओझल हो जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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