श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 42: सुग्रीव का पश्चिम दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए सुषेण आदि वानरों को वहाँ भेजना  »  श्लोक 38-40
 
 
श्लोक  4.42.38-40 
 
 
तेषां मध्ये स्थितो राजा मेरुरुत्तमपर्वत:।
आदित्येन प्रसन्नेन शैलो दत्तवर: पुरा॥ ३८॥
तेनैवमुक्त: शैलेन्द्र: सर्व एव त्वदाश्रया:।
मत्प्रसादाद् भविष्यन्ति दिवा रात्रौ च काञ्चना:॥ ३९॥
त्वयि ये चापि वत्स्यन्ति देवगन्धर्वदानवा:।
ते भविष्यन्ति भक्ताश्च प्रभया काञ्चनप्रभा:॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  मेरु पर्वतराज उन पर्वतों के बीच में विराजमान है, जिसे पूर्वकाल में सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर वरदान दिया था। उन्होंने उस शैलराज से कहा कि ‘जो दिन-रात तुम्हारे आश्रय में रहेंगे, वे मेरी कृपा से स्वर्णमय हो जायँगे और जो भी देवता, दानव और गंधर्व तुम्हारे ऊपर निवास करेंगे, वे स्वर्ण के समान कांतिमान और मेरे भक्त हो जायेंगे’।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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