श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 41: सुग्रीव का दक्षिण दिशा के स्थानों का परिचय देते हुए वहाँ प्रमुख वानर वीरों को भेजना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  4.41.31 
 
 
प्रणम्य शिरसा शैलं तं विमार्गथ वानरा:।
तमतिक्रम्य दुर्धर्षं सूर्यवान्नाम पर्वत:॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  वानरो! तुमलोग उस पर्वत को प्रणाम करते हुए अपने मस्तक झुकाना और वहाँ हर जगह सीता को ढूँढते हुए आगे बढ़ते जाना। उस दुर्धर्ष पर्वत को पार करने के बाद तुम्हें सूर्यवान नाम का पर्वत मिलेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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